अप्रतिम कविताएँ
एक आशीर्वाद
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
- दुष्यन्त कुमार
Contributed by: Ruchi Varshneya

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'तोड़ती पत्थर'
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'


वह तोड़ती पत्थर;
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वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
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नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी


एक अदद तारा मिल जाये
तो इस नीम अँधेरे में भी
तुमको लम्बा ख़त लिख डालूँ।

छोटे ख़त में आ न सकेंगी
पीड़ा की पर्वतमालाएँ
और छटपटाहट की नदियाँ।
पता नहीं क्या वक़्त हुआ है,
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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