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आज नदी बिलकुल उदास थी
आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर -
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
-
केदारनाथ अग्रवाल
काव्यपाठ:
वाणी मुरारका
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केदारनाथ अग्रवाल
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बसंती हवा
इस महीने :
'तोड़ती पत्थर'
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
वह तोड़ती पत्थर;
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वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
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..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक अदद तारा मिल जाये'
सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी
एक अदद तारा मिल जाये
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पीड़ा की पर्वतमालाएँ
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पता नहीं क्या वक़्त हुआ है,
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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